10 October 2013

विन्ध्य क्षेत्र के मल्लाह केवट नाविक निषाद को माझी जनजाति के साथ जोड़ा जाय।

मध्य प्रदेश माझी समाज महासंघ ने जिला प्रशासन को ज्ञापन देकर माझी के पर्याय मल्लाह केवट नाविक निषाद को जनजाति का दर्जा दिलाये जाने की मांग की है। ज्ञापन के माध्यम से सरकार को अवगत कराया गया है की मल्लाह केवट नाविक ही, माझी क्यों?
माझी के सन्दर्भ में बताया गया की --
१. अन्थ्रोपोलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया द शैडूल्ड ट्राब्स के अनुसार मल्लाह केवट नाविक को मध्य प्रदेश के शहडोल रीवा सतना पन्ना छतरपुर और टीकमगढ़ जिलो में माझी जाति की  पर्याय जाति बताया गया है। 
२. संविधान आदेश 1950 के अंतर्गत भाग ६ की जिलेवार अनु .जन. जाति सूची के क्रमांक ४ में दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, सतना और रीवा जिलो में  माझी को अनु. जन. जाति में रखा गया है। लेकिन इसकी पर्याय मल्लाह केवट नाविक निषाद का इस जाती के साथ उल्लेख नहीं है। 
३. माझी जनजाति निश्चित रूप से मल्लाह, केवट, नाविक, निषाद के लिए ही प्रयोग किया गया है।
४. मल्लाह, केवट, नाविक ही माझी जन जाति के पर्याय हैं।  इसका पता शब्द कोष के द्वारा भी देखा जा सकता है। 
हिंदी शब्द कोष - भार्गव 
                         माझी-       नाव खेनेवाला मल्लाह (पेज ६२३ )
                      मल्लाह -    केवट , माझी ( पेज ६१६ )
                         नाविक -     मल्लाह , माझी (पेज ४२१) 
 आक्सफोर्ड शब्द कोष -
                         मझियाना - नाव खेना (पेज ९८५)
                         माझी -       मल्लाह, केवट (पेज १०११)
                         मल्लाह -    माझी , केवट (पेज १०००)
५. सन 1927 के एक राजकीय अधिकार पत्र में सतना जिले के रघुराजनगर तहसील में मल्लाहों के समुदाय को नदी तालाबो में नाव चलाने का कार्य दिया गया था।  इसी पत्र में मल्लाहों को माझी की संज्ञा भी प्रदान की गई है जिसमे मल्लाह को माझी मल्लाह कहा गया लिखा हुआ है। 
 ६. मध्यप्रदेश राज्यपत्र भोपाल ४ फ़रवरी १९८३ के अनुसार पिछड़ा वर्ग की सूची जो २ अक्टूबर १९८२ से राज्य छात्र वृत्ति हेतु जारी हुई थी उसमे मल्लाह केवट नाविक का उल्लेख नहीं है। सायद इन्हें माझी की पर्याय जाति मानते हुए छोड़ा गया हो। 
७. जिस प्रकार ओ बी सी की वर्तमान सूची के क्रमांक १२ में कीर जाति को भोपाल, रायसेन, सीहोर जिलों में एस टी होने की मान्यता सरकार दे रखी है, ठीक इसी तरह इस सूची के मल्लाह केवट नाविक निषाद को शहडोल, रीवा, सतना, पन्ना, छतरपुर व टीकमगढ़ जिलों में एस टी की मान्यता मिलनी चाहिए। 
८. मध्यप्रदेश सरकार ने आदेश क्रमांक २१-६/२५-६/९२ दिनांक २६. १२. ८४ को जारी कर ओ बी सी की सूची के क्रमांक १२ में दर्ज मांझी को हटा दिया। लेकिन इसे कहाँ किश सूची में जोड़ा गया इसका उल्लेख कहीं नहीं मिलता। अर्थात सरकार के अनुसार यह कोई जाति ही नहीं थी जिसे उसके उचित स्थान पर दर्ज किया जाता। इससे एक बात यह भी साबित होती है कि  माझी कौन सी जाति है? सरकार तय नहीं कर पा रही। 
९. माझी जाति के कार्यों पर आधारित निम्नलिखित लोकप्रिय गीतों से माझी कौन है का प्रमाण मिलता है। 
             १. नदिया चले चले रे धारा ------------------------------- . 
             २.ओ माझी चल -------------------------------------------
             ३. ओ मेरे माझी -----------------------------------------
             ४. माझी चल ओ माझी चल ---------------------------
             ५. माझी रे हिम्मत न हार -----------------------------
१०. उपरोक्त सभी प्रमाणों से यही निष्कर्ष निकलता है की मल्लाह केवट नाविक समूह ही माझी जनजाति है जिसे इन्हे शहडोल, रीवा, सतना, पन्ना, छतरपुर व टीकमगढ़ जिलों में एस टी की मान्यता सरकार को देनी चाहिए।  

                                                                                                                               
                                                                                                 आर0 एस0 केवट (एम डी)
                                                                                                    माझी समाज महासंघ   

27 September 2013

विंध्य क्षेत्र में मल्लाह, केवट, नाविक निषाद को माझी जनजाति की मान्यता मिले.

माझी समाज महासंघ ने 27 सितम्बर 13 को विंध्य क्षेत्र में मल्लाह, केवट, नाविक निषाद को माझी जनजाति की मान्यता मिले इस हेतु महासंघ के पदाधिकारियों ने सतना जिला प्रशासन को ज्ञापन सौपा।  जिसमे मुख्य रूप से सामिल थे महासंघ के प्रबंध संचालक आर एस केवट, प्रदेशाध्यक्ष सुनील कश्यप, संचालक एवं प्रवक्ता  रामेश्वर प्रसाद केवट , सह संचालक कामता प्रसाद निषाद, सतीश कुमार केवट, अयोध्या प्रसाद केवत, जिला अध्यक्ष राजाराम मल्लाह, सुखी केवट, आर एन केवट, सुदर्शन प्रसाद केवट, राकी केवट, कार्यक्रम की वीडियो ग्राफी एवं छायांकन कौशल केवट ने किया। कार्यक्रम के कुछ छायाचित्र निम्नानुसार हैं।  























22 September 2013

महासंघ की समीक्षा बैठक प्रदेश कार्यालय सतना में सम्पन्न

महासंघ की समीक्षा बैठक प्रदेश कार्यालय सतना में सम्पन्न 
            मध्यप्रदेश माझी समाज महासंघ की समीक्षा बैठक दिनांक 22. 09. 2013 को पतेरी सतना में आयोजित हुई। बैठक में प्रदेश अध्यक्ष श्री सुनील कश्यप, प्रबंध संचालक आर एस केवट , सह संचालक कामता प्रसाद निषाद , सतना जिला अध्यक्ष राजाराम मल्लाह, जिला समित सदस्य कमलेश केवट ,सांस्कृतिक एवं मीडिया प्रभारी सतीश केवट, प्रचार एवं प्रसार प्रभारी नत्थू निषाद , रामपुर ब्लाक अध्यक्ष आर एन  केवट , मझगवां ब्लाक अध्यक्ष सतीश निषाद , प्रदेश सलाहकार राकेश कुमार माझी , के अलावा कौशल कुमार केवट , व केशव कुमार केवट ने भाग लिया। बैठक में निम्नलिखित एजेंडे पर चर्चा के बाद निर्णय पारित हुए। 
1 . जिले के शेष गावों में ग्राम अध्यक्षों की नियुक्तियों को पूरा कर ग्यारह सदस्यीय कार्यकारणी का गठन        करना। 
२. समितियों के निष्क्रिय सदस्यों के स्थान पर सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ताओं की नियुक्तियां करना। 
३. महासंघ में नियमित रूप से सदस्यता राशि को जमा करना। 
४. माझी अनुसूचित जनजाति की उप जातियों मल्लाह केवट नाविक और निषाद को जनजाति का लाभ मिले इस हेतु सरकार को ज्ञापन देना। 
५. अक्टूबर माह से अन्य जिलों की जिला कार्यकारणी के गठन का कार्य प्रारंभ करना। 
६. समाज के कर्मचारियों का कर्मचारी प्रकोष्ट का गठन करना।  
७. प्रतिभाओं का सम्मान समारोह आयोजित कर उन्हें सम्मानित करना। 
८. माझी पत्रिका का प्रकाशन जनवरी १४ तक पूरा करना। 
९. चुने गए ग्राम अध्यक्षों का सम्मलेन व प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन करना। 
१०. राष्ट्रिय स्तर का निषाद समाज सम्मलेन को आयोजित करना। 
                          उपरोक्त सभी लिए गए निर्णय अक्टूबर माह से प्रारंभ होंगे। बैठक का छायांकन निम्नानुसार हैं।   





20 September 2013

मझवार , मांझी और माझिया के बारे में विस्तार से जानें- ये कौन?

THE TRIBES AND CASTES OF THE
CENTRAL PROVINCES OF INDIA
VOL. IV Page no. 149 to 153
 R. V. RESSELL
HEERALAL
Majhwar, Manjhi, Majhia- A small mixed tribe who have apparently originated from the Gonds, Mundas and kawars. About 14000 Majhwars were returned in 1911 from the Raigarh, Sarguja and Udaiypur state. The word Manjhi means the headman of tribal sub division being derived from the Sanskrit Madhya, are he who is in the center in Bengal Manjhi has the meaning of the steersman of a boat or ferryman, and this may have been its original application, as the steersman might well be he who sat in the centre. When a tribal party makes an expedition by boat, the leader would naturally occupy the position of steersman, and hence it is easy to see how the term Manjhi came to be applied to the leader or head of the clan and to be retained as a title for general use. Sir H. Risley gives it as a title of the Kewat or fisherman and many other castes and tribes in Bengal. But it is also the name for a village headman among the Santals, and whether this meaning is derived from the prior signification of steersman or
is of independent origin is uncertain. In Raigarh Mr. Hira Lal state that the Manjhi or Manjhias are fisherman and are sometimes classed with Kewats. They appear to be Kols who have taken to fishing and being looked down on by the other cols on this account, took the name of Majhia or Manjhi, which they now derive from Machh, a fish. “The appearance of the Manjhias whom I saw and examined was typically aboriginal and their language was a curious mixture of Mundari, santal and korwa, though they stoutly repudiated connection with any of these tribes. They could count only up to three in their own language, using the Santal words mit, baria, pia. Most of their terms for parts of the body were derived from Mundari, but they also used some Santali and Korwa words. In their own language they called themselves Hor, which means a man, and is the tribal name of the Mundas.’’
          On the other hand the Majhwars of the mirzapur, of whom Mr. Crooke gives a detailed and interesting account, clearly appear to be derived from the Gonds. They have five subdivisions, which they say are descended from the five sons of their
first Gond ancestor. These are Poiya, Takam, Marai, Chika and Oiku. Four of these names are those of Gond clans, and each of the five sub tribes is further divided in to a number of exogamous septs, of which a large proportion bear typical Gond names, as Markam, Netam, Tekam, Masham, Sindram and so on. The Majhwars of Mirzapur also, like the Gonds, employ Patharis or Pardhans as their priests, and there can thus be can no doubt that they are mainly derived from the Gonds. They would appear to have come to Mirzapur from Sarguja and the Vindhyan and Satpura hills, as they say that their ancestors ruled from the fort of Mandla, Garha in Jabbalpore, Sarangarh, Raigrah and other places in the Central Provinces. They worship a deified Ahir, whose legs were cut off in a fight with some Raja, since when he has become troublesome ghost. “He now lives on the Ahlor hill in Sarguja, where his petrified body my still be seen, and the Manjhis go there to worship him. His wife lives on the Jhoba hill in Sarguja. Nobody but a Baiga dares to ascend the hill, and even the Raja of Sarguja when he visits the neighbourhood sacrifices a black goat. Manjhis believe if these two deities   are duly propitiated they
can give anything they.” The story makes it probable that the ancestors of these manjhis dwelt in Sarguja. The Manjhis of Mirzapur are not boatman or fisherman and have no tradition of having ever been so. They are backward tribe and practise shifting cultivation on burnt- out patches of forest. It is possible that they may have abandoned their former aquatic profession on leaving the neighbourhood  of the river, they may have simply adopted  the name especially since it has the meaning of a village headman and is used as a title by the Santal and other castes and tribes. Similarly the term Munda, which at first meant the headman of a Kol village, is now the common name for the Kol tribe in Chota Nagpur.
          Again the Manjhis appear to be connected with the Kawar tribe. Mr. Hira Lal states that in Raigrah they will take food with Kewat, Gond, Kawars or Ahirs, but will not eat rice and pulse, the most important and sacred, with any outsides exept Kawars; and this they explain by statement that their ancestors and those of the Kawars were connected. In the Mirzapur the Kaurai Ahirs will take food and water from the Majhwars, and these Ahirs are not improbably derived from the Kawars. Here the Majhwars also an oath taken when touching a broadsword as most binding, and the Kawars of the Central Provinces worship a sword as one of their principal deities. Not improbably the Manjhis may include some Kewats, as this caste also used Manjhi for a title; and Manjhi is both a sub caste and title of the Khairwars. The general conclusion from the above evidence appears to be that the caste is a very heterogeneous group who’s most important constituents come from the Gond, Munda, Santal and Kawar tribes. Whether the original bond of connection among the various people who call themselves Manjhi was the common occupation of boating and fishing is a doubtful point.
          The Manjhis of Sarguja, like those of Raigarh, appear to of Munda and Santal rather than of Gond origin. They have no more subdivision, but a number of totemistic sept. Those of the Bhainsa or buffalo sept are split into the Lotan and Singham subsepts, lotan meaning a place where buffaloes wallow and sing a horn. The Lotan Bhainsa sept say that their ancestor was born in a place where a buffalo had wallowed, and the Singham Bhainsa that their ancestor was born while his mother was holding the horn of a buffalo. These sept consider the buffalo sacred and will not yoke it to a plough or cart, through they will drink its milk. They think that if one of them killed a buffalo their clan would become extinct. The Bhaghni Majhwars, named after the bagh or tiger, think that a tiger will not attack any member of their sept unless he has committed an offence entailing temporary excommunication from caste. Until this offence has been expiated his relationship with the tiger as head of his sept is in abeyance and the tiger will eat him as he would any other stranger. If a tiger meet a member of the sept who is free from sin, he will run away. When the Baghni sept hear that any Majhwar has killed a tiger they purity their houses by washing them with cow dung and water. Member of the Khoba or peg sept will not make a peg or drive one into the ground. Those of the Dumar or fig-free sept say that their first ancestor was born under this tree. They consider the tree to be sacred and never eat its fruit, and worship it once a year. Member of the sept named after the shiroti tree worship the tree every Sunday.
          Marriage within the sept is prohibited and for three generation between persons related through females. Marriage is adult, but matches are arranged by the parents of the parties. At betrothal the elders of the caste must be regaled with cheora or parched rice and liquor. A bride price of Rs 10 is paid, but a suitor who cannot afford this may do service to his father-in-law for one or two year in lieu of it. At the wedding the bridegroom put a copper ring on the bride’s finger and marks her forehead with vermilion. The couple walks seven times round the sacred post, and seven little heaps of rice and pieces of turmeric are arranged so that they may touch one of them with their big toes at each round. The bride’s mother and seven other women place some rice in the skirt of their cloths and the bridegroom throws this cover his shoulder. After this picks up the rice and distributes it to all the women present, and the bride goes through the same ceremony. The rice is no doubt an emblem of fertility, and its presentation to the women may perhaps be expected to render them fertile.
          On the birth of child the navel-string is buried in the front of the house. When a man is at the point of death they placed a little cooked rice and curds in his mouth so that he may not go hungry to the other world, in view of the face that he has probably eaten very little during his illness. Some cotton and rice are also placed near his head of the corpse in the grave so that he may have food and clothing in the next world. Morning is observed for five days, and at the end of this period the mourners should have their hair cut, but if they cannot get it done on this day, the rite may be performed on the same day in the following year.
          The tribe worship Dulha Dev, the bridegroom god, and also make offerings to their ploughs at the time of eating the new rice and at the Holi and Dasahra festivals. They dance the Karma dance in the month of Asarh and Kunwar or at the beginning and end of the rains. When the time has come to Gaotia headman or the Baiga priest fetches a branch of karma tree from the forest and sets it up in his yard as a notice and invitation to the village. After sun set all the people, men women and children assemble and dance round the tree, so the accompaniment of a drum known an Mandar. The dancing continues all night, and in the morning the host plucks up the branch of the karma tree and consigns it to a stream, at the same time regaling the dancers with rice, pulse and a goat. This dance is a religious rite in the honor of karma Raja and is believed to keep sickness from the village and bring it prosperity. The tribe eats flesh but abstain from beef and pork. Girls are tattooed on arrival at puberty with representations of the tulsi or basil, four arrow-head in the form of a cross, and the foot-ornament known as pairi.   
                                                                                                          Courtesy –
                R. S. Kewat.
(Founder and managing director, majhi samaj mahasangh)






19 September 2013

KNOW MORE ABOUT MALLAH CASTE IN MADHYA PRADESH

THE TRIBES AND CASTES OF THE
CENTRAL PROVINCES OF INDIA
VOL. IV Page no. 171 to 112
 R. V. RESSELL
HEERALAL
Mallah, Malha.- A small cast of boatman and fisherman in the Jabbulpore and Narsinghpur District, which numbered about 5000 person in 1911. It is scarcely correct to designate the mallahs as distinct caste, as in both these Districts it appears front inquiry that the term is synonymous with Kewat. Apparently, however, the Mallahs do from inquiry that the term is synonymous with kewat. Apparently, however, the Mallahs do form a separate endogamous group, and owing to many of them having adopted the profession of growing hemp, a crop which respectable Hindu castes usually refuse to cultivate, it is probable that they would not be allowed to intermarry with the Kewats of other Districts. In the United Provinces Mr. Crooke state that the Mallahs, though, as their Arabic name indicates, of recent origin, have matured into a definite social group, including a number of endogamous tribes. The term mallah has nothing to do with the Mulla or Muhammadan priest among the Frontier tribes, but comes from an Arabic word meaning ‘to be salt’ or, according to another derivation, ‘to move the wings as a bird.’ The Mallahs of the central provinces are also, in spite of their Arabic name, a purely Hindu caste. In Narsinghpur they say that their original ancestor was one Bali or Baliram, who was a boatman and was so strong that he could carry his boat to the river and back under his armpit. On one occasion he ferried Rama across the Ganga in Benares, and is said that Rama gave him a horse to show his gratitude; but Baliram was so ignorant that he placed the bridle on the horse’s tail instead of the head. And from this act of Baliram’s arose the custom of having the rudder of a boat at the stern instead of bow. The Mallah in the Central Provinces appear from their family names to be immigrants from Bundelkhand. Girls are married under the age of twelve years, and the remarriage of widows is permitted, while divorce may be affected in the presence of the panchayat or caste committee by the husband and wife breaking a straw between them. They are scantily clothed and are generally poor. A proverb about them says:
Jahan baithan malao
Tahan lage alao
Or, ‘Where Mallah sit, there is always a fire.’ This refers to their custom of kindling fires on the river-bank to protect them from cold. In Narsinghpur the Mallahs have found a profitable opening in the cultivation of hemp, crops which other Hindu castes until recently tabooed on account probably of the dirty nature of the process of cleaning out the fiber and the pollution necessarily cased to the water supply. The sow and cut hemp on Sundays and Wednesdays, which are regarded as auspicious days. They also grow melons, and will not enter in the melon-field with their shoes on or allow a woman during her periodical impurity to approach it. The Mallah are poor and illiterate, but rank with Dhimars and kewats, and Brahmans will take water from their hands.
                                                                                                        Courtesy –        
                                                                                                        R. S. Kewat.
(Founder and managing director, majhi samaj mahasangh) 

15 September 2013

माझी जनजाति की उपजातियो की जनजातीय मान्यता की लड़ाई

मध्यप्रदेश में माझी जनजाति के उप जातियों के लिए जनजातीय मान्यता हेतु किये जा रहे प्रयास विफल हो रहे हैं। प्रयास कर्ताओं को सबसे पहले यह सोचना चाहिए की जिन प्रमाणों के तहत मांग की जा रही है उनमे कितनी सत्यता हैं। बन्धुओ लडाई में यदि किसी को परास्त करना हो तो उसे उचित दांव  से ही चित्त किया जा सकता है। स्वार्थ एवं लालच वस अनेक लोगो ने जरा सा सुराख़ पाकर माझी जनजाति बनाने का दावा ठोक  रहे हैं। माझी कौन है ? सरकार माझी किसे मानती है ? माझी जनजाति का श्रीगणेश कहाँ से हुआ ? माझी जनजाति का श्रीगणेश जहाँ से हुआ क्या वहां  कोई माझी सरनेम का उपयोग करता था ? जहां से माझी का श्रीगणेश हुआ, क्या उस क्षेत्र में माझी के प्रमाण पत्र शासन द्वारा जारी किये गए ? यदि उस क्षेत्र में प्रमाण पत्र शासन से जारी नहीं हुए तो माझी जनजाति किसके लिए घोषित की गयी? माझी जनजाति के प्रदर्शन कर्ता इस बात पर ज़रा भी गौर नही कर रहे हैं की माझी शब्द मूल रूप से किसके लिय उपयोग किया गया है। जहा तक सरकार या न्यायालय की बात है वहा पर तुकबंदी या अगर मगर से काम नहीं चलने वाला है। माझी जनजाति की कथित उप जातियों से मेरा अनुरोध है की इस जनजाति की उप जातियों की लड़ाई इसके प्रारंभ क्षेत्र से  लड़ी जाए। पूरे प्रदेश के इस जनजाति के दावेदार अपनी पूरी ताकत माझी  जनजाति के प्रारंभ क्षेत्र में लगायें । यदि  येसा नहीं किया गया तो सभी लोग यह समझ ले की माझी जनजाति की उपजातियों को जनजातीय  मान्यता मिलना असम्भव है। अंत में सभी को कहीं  येसा न कहना  पड़े कि  अंगूर खट्टे है।   


18 June 2013

माझी समाज का महा जनजागरण कार्यक्रम

माझी विकास अभियान का महा जनजागरण कार्यक्रम
प्रिय बन्धुऒ,
                 माझी (मल्लाह,केवट ,नाविक, निषाद ) समाज महासंघ "माझी विकास अभियान" के तहत महाजनजागरण कार्यक्रम मध्यप्रदेश के सभी जिलों में चलाया जायेगा। वर्तमान समय में यह कार्यक्रम सतना जिले के समस्त स्वजातीय ग्रामों एवं बसाहटों में चौपाल/नुक्कड़ सभा/संयुक्त बैठक/सम्मलेन जैसे कार्यक्रमों का आयोजन  किया जा रहा है। इन कार्यक्रमों से प्रत्येक गाँव में ग्राम अध्यक्षों की नियुक्तियां कर १ १ सदस्यीय कार्यकारणी का गठन किया जा रहा है। इन समितियों में समाज के युवा वर्ग को प्राथमिकता दी जाएगी। समाज को विकास के राह पर लाने हेतु शिक्षा पर विशेष कार्य किये जाने की आवश्यकता है। अतः शैक्षिक आकलन के बिना शिक्षा के विकास हेतु योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं किया जा सकता, इस हेतु समाज में नियमित शैक्षिक सर्वेक्षण की आवश्यकता है। इस महत्त्वपूर्ण सर्वे कार्य को ग्राम समितियों को सौपा जा रहा है, सर्वे से प्राप्त आकड़ो के के अनुसार बच्चों के शैक्षणिक क्षेत्रों का निर्धारण कर प्रत्येक जिले के विशिष्ट शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश दिलाने का कार्य किया जाएगा। वर्तमान समय में धन के बिना किसी भी योजना को उसके अंतिम लक्ष्य तक नही पहुचाया जा सकता अतः संघ के कोष में अधिक से अधिक धन जमा किये जाने की आवश्यकता है। इन उपरोक्त लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु जो भी संम्भ्रांत स्वजातीय बंधु इस अभियान से जुड़ना चाहता है, महासंघ में उनका स्वागत है। जब भी आपके गाव का सर्वे हो उस समय सर्वेकर्ता को पढने वाले बच्चों की जानकारी जरूर दें ताकि उन्हें उच्च शिक्षा/तकनीकी शिक्षा/कंप्यूटर शिक्षा आदि हेतु सही मार्गदर्शन प्रदान किया जा सके। आप सभी बन्धुऒ से अपील है की महासंघ के सभी प्रकार के कार्यक्रमों में भाग लेकर समाज की दिशा और दशा बदलने में अपना सराहनीय योगदान प्रदान करें।                                सुझाव के लिए संपर्क करें - 98 2 7 2 6 9 4 9 0 या 8 1 0 9 7 7 2 9 2 6
                                                                                                       आर. एस . केवट ( मैनेजिंग डायरेक्टर)

15 नवंबर 2024 - विंध्‍य क्षेत्र माझी समाज महासंघ का शपथग्रहण समारोह सतना में संंपन्‍न

 15 नवंबर 2024 - विंध्‍य क्षेत्र माझी समाज महासंघ का शपथग्रहण समारोह सतना में संंपन्‍न हुआ। विंध्‍य क्षेत्र में माझी जनजाति के केवट, मल्‍लाह...