कश्यप टाइटिल मछुआ समुदाय के SC आरक्षण के लिए फिर से घातक साबित हुआ है। दिल्ली में मल्लाह को अनुसूचित जाति का दर्ज प्राप्त है जबकि दिल्ली में ही कश्यप धीमर कहार निषाद जातियाँ अन्य पिछड़ा वर्ग में पंजीकृत हैं। यूपी से दशकों पहले माइग्रेट होकर दिल्ली आ बसे मछुआ समुदाय के लाखों बंधू दिल्ली राज्य द्वारा मछुआ समुदाय की मल्लाह को अनुमन्य SC आरक्षण की सुविधा तो चाहते हैं लेकिन अपने नाम के सम्मुख मल्लाह लिखने में शर्म महसूस करते है और उसी राज्य की पिछड़ी जातियों के जातीय शीर्षकों को लिखकर स्वयं अपने पैरों में जानबूझ कर कुल्हाड़ी मारते हैं।
संवैधानिक बारीकियों और क़ानूनी पेचों से अनभिज्ञ लोगों ने आरक्षण व्यवस्था का मखौल उड़ाते हुए अपने लाभ के लिए प्रमाणपत्र तो हासिल कर लिए लेकिन सार्वजानिक रूप से अपनी जाति को छिपाया। यानि SC का लाभ लिये व्यक्ति ने स्वयं को पिछड़ी जाति के शीर्षकों से और पिछड़ी जाति से लाभान्वित व्यक्ति ने स्वयं को सामान्य जाति का यानि ब्राह्मण या राजपूत बताया। शीघ्र ही इसके दुष्परिणाम भी सामने आये। अपने आप को आरक्षण का ठेकेदार समझने वालों ने इसे चैलेन्ज किया तो समाज बन्धुं कोर्ट कचहरी के चक्कर काटते नजर आये। SC आरक्षण को मजाक़ समझकर हलके में लेने वाले इस समाज के नासंमझों ने स्थिति यहाँ तक बिगाड़ी कि एक भाई खुद को मल्लाह बताकर SC का प्रमाणपत्र ले रहा है तो उसका सगा भाई खुद को धीमर बताकर पिछड़ी जाति में घोषित हो रहा है। भाई रणजीत सिंह का मामला भी इससे जुदा नहीं है।
बिलकुल यही स्थिति उत्तर प्रदेश में कश्यप शीर्षक ने उत्त्पन्न की।लोग तुरैहा जाति का SC प्रमाणपत्र तो चाहते थे लेकिन स्वयं की जाति अथवा टाइटिल कश्यप लिखते बताते हुए। जबकि कश्यप जाति के रूप में यूपी में पिछड़ी जाति सूची क्रमांक 04 पर पंजीकृत है और तुरैहा मझवार SC में।प्रशासन की बात भी ठीक है कि SC में पंजीकृत लोग जब स्वयं को पिछड़ी जातियों में उल्लिखित जातियों से सम्बद्ध करेंगे तो भ्रम होना लाजमी है । ऐसे में जाहिर है जो जाति 64 साल से आरक्षण के नाम की रोटी तोडती आ रही है उसके पेट में मरोड तो उठेगी ही।
Sanjay Kr Choudhary Sahani
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